मध्यप्रदेश में क्या पुराने और रटे-रटाए नामों के सहारे 2023 का रण जीतने की कोशिश में है कांग्रेस?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में क्या पुराने और रटे-रटाए नामों के सहारे 2023 का रण जीतने की कोशिश में है कांग्रेस?

BHOPAL. मध्यप्रदेश की कुछ सीटें केक वॉक से हॉट केक में तब्दील हो चुकी हैं। बीजेपी की चार लिस्ट और कांग्रेस की एक ही लिस्ट से मध्यप्रदेश के चुनावी रण की तस्वीर काफी कुछ साफ हो चुकी है। बीजेपी ने नई रणनीति अपनाते हुए कुछ दिग्गजों को उलझी हुई सीटों की जिम्मेदारी सौंप दी। उन सीटों पर मुकाबले को और दिलचस्प बनाने के लिए कांग्रेस ने भी चुन-चुनकर प्रत्याशी उतारे हैं। नतीजा ये हुआ कि जहां मुकाबला या यू कहें कि बीजेपी की जीत बहुत आसान नजर आ रही थी उन्हीं सीटों पर बड़ा पेंच उलझ गया है। कांग्रेस ने भले ही बहुत इंतजार के बाद लिस्ट जारी की, लेकिन एक ही लिस्ट से ये साफ कर दिया कि सत्ता में वापसी हो या न हो लेकिन बीजेपी के लिए फाइट आसान होने वाली नहीं है। ऐसी एक दो नहीं पूरी 29 सीटें हैं जहां मुकाबला बेहद दिलचस्प हो चुका है।

मप्र में चुनावी खेल उतना आसान नहीं होने वाला है

बीजेपी की पहली लिस्ट के बाद मध्यप्रदेश में हालात तकरीबन सामान्य ही रहे। लिस्ट बहुत सोच समझ कर जारी की गई। थोड़ी बहुत बगावत के लिए बात आगे बढ़ गई और दूसरी लिस्ट भी जारी हो गई। दूसरी लिस्ट जारी होते ही ये साफ हो गया कि बीजेपी अपने चिरपरीचित अंदाज में चौंकाने के लिए तैयार है। इस लिस्ट में जिस हिसाब से परिवार की कमजोर कड़ी को अलग कर मजबूत नेता को मैदान में उतारा गया। उस रणनीति में बीजेपी के चाणक्य अमित शाह की सोच साफ नजर आई। अब तक जितनी भी लिस्ट बीजेपी की जारी हुई हैं। सबसे ज्यादा लाइमलाइट इसी लिस्ट ने बटोरी। जबरदस्त डिले के बाद आई कांग्रेस की लिस्ट ने भी इन सीटों पर चुनावी पारा हाई कर दिया है। जिन सीटों पर सांसद और दूसरे कद्दावर नेताओं का नाम डिक्लेयर कर बीजेपी ने शायद अपनी ही रणनीति पर अपनी पीठ थपथपा ली होगी। कांग्रेस की लिस्ट आते ही उन सीटों पर ये साफ हो गया कि खेल उतना भी आसान होने वाला नहीं है। भले ही दिग्गज ने उस सीट की कमान संभाली हो, लेकिन उनके लिए भी सीट निकालना इतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है।

कांग्रेस ने पुराने धुरंधरों को उतारकर बड़ा चांस लिया है

कांग्रेस की लिस्ट में यूं तो कोई खास चौंकाने वाले नाम नहीं रहे, लेकिन ज्यादा एक्सपेरिमेंट होने की जगह कांग्रेस ने अपने पुराने सिपहसालारों पर ही भरोसा किया है। खासतौर से जिन सीटों पर बहुत सोच समझकर बीजेपी ने दिग्गजों को कमान सौंपी है वहां कांग्रेस ने पुराने धुरंधरों को मैदान में उतारकर बड़ा चांस लिया है। कांग्रेस के जो नेता बहुत आसानी से अपनी सीट पर लगातार जीतते आ रहे थे अब उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए दिन रात एक करना होगा। ये पुराने चेहरे बीजेपी के दिग्गज चेहरों की मुश्किल बन सकते हैं या फिर रिपिटेशन की बोरियत से बचने के लिए मतदाता नया विकल्प चुन सकते हैं। सारे समीकरण ऐसे हैं जो ढाई दर्जन से ज्यादा सीटों को खास और हॉट बना रहे हैं।

विरोध का खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ सकता है

शुरुआत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री की सीटों से करते हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान की पारंपरिक सीट बुधनी पर कांग्रेस ने टीवी पर हनुमान का किरदार अदा कर चुके विक्रम मस्ताल को मैदान में उतारा है। तो छिंदवाड़ा की सीट बचाने की जिम्मेदारी कांग्रेस से खुद कमलनाथ ने संभाली है। इस सीट पर तीन बार साल 1990, 2003 और 2008 के चुनाव में बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह चुनाव जीतते रहे, लेकिन उन की जगह बीजेपी ने कमलनाथ से लोकसभा चुनाव हार चुके बंटी साहू को ही दोबारा टिकट दिया है। इस बात से चंद्रभान खेमे में नाराजगी बताई जा रही है। जिसका खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ सकता है।

जिन सीटों पर बीजेपी ने सांसदों को मौका दिया है वहां भी फाइट आसान नहीं है...

  • दिमनी सीट से खुद नरेंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं। जो अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे, पार्टी ने उन्हें ही मैदान में उतार दिया। अब उन्हें दिमनी की सीट वापस बीजेपी की झोली में डालनी है।
  • साल 2013 से पहले तक ये सीट बीजेपी के खाते में ही थी। 2013 के चुनाव में बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया ने यहां से जीत हासिल की। 2018 में कांग्रेस से गिर्राज दंडोतिया जीते।
  • 2020 में उन्होंने बीजेपी से इसी सीट से उपचुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर से चुनाव हार गए। अब कांग्रेस रवींद्र सिंह तोमर को ही टिकट देना चाहती है।
  • बसपा ने फिर बलवीर सिंह दंडोतिया को मैदान में उतारा है। तोमर और ब्राह्मण मतदाताओं की इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के पूरे आसार हैं।
  • नरसिंहपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला पटेल वर्सेज पटेल का है। इस सीट से छोटे भाई जालम सिंह पटेल का टिकट काट कर बड़े भाई और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को चुनाव लड़ने भेजा गया है।
  • कांग्रेस ने उनके सामने पिछला चुनाव हारे प्रत्याशी लाखन सिंह पटेल को टिकट दिया है। प्रहलाद पटेल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले हैं।
  • इस सीट पर पटेल वोटर्स का ही दबदबा रहा है। साल 2013 से पहले ये सीट कांग्रेस के खाते में ही रही है। उसके बाद से यहां बीजेपी काबिज है। इस बार दो जमीनी नेताओं की टक्कर से मुकाबला दिलचस्प होने के आसार हैं।
  • कहा जाता है कि निवास विधानसभा सीट पर जिसकी जीत होती है सरकार उसी की बनती है।
  • इस सीट को वापस अपने खाते में लाने के लिए बीजेपी ने इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को सौंपी है।
  • जिन्हें मौजूदा कांग्रेस विधायक डॉ. अशोक मसकोले से ही चुनाव लड़ना है। कुलस्ते तकरीबन तीस साल पहले हुए चुनाव में यहां कांग्रेस से चुनाव हार चुके हैं।
  • 2003 से 2013 तक यहां बीजेपी के रामप्यारे कुलस्ते बहुत कम अंतर से जीत हासिल कर काबिज होते रहे। लेकिन पिछला चुनाव कांग्रेस के नाम रहा।
  • अब लंबे समय बाद विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे फग्गन सिंह कुलस्ते पर सीट वापस अपने खेमे में लाने की जिम्मेदारी है।
  • इंदौर एक का हाल कुछ-कुछ नरसिंहपुर जैसा है। यहां पिता कैलाश विजयवर्गीय को टिकट देकर चुनाव लड़ने भेजा गया है।
  • जिसके बाद बेटे आकाश विजयवर्गीय का टिकट कटने की संभावना है। अंदरखानों से ये खबर भी आ रही हैं कि विजयवर्गीय बेमन से इस चुनाव में उतरे हैं।
  • कांग्रेस प्रत्याशी और मौजूदा विधायक संजय शुक्ला की यहां बेहद अच्छी पकड़ है। इस वजह से अपने ही गढ़ में विजयवर्गीय को कांटे के मुकाबले का सामना करना होगा।
  • जबलपुर पश्चिम की लड़ाई भी टफ है। यहां से सांसद राकेश सिंह को पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक तरूण भानोत से मुकाबला करना है।
  • साल 2013 में 923 मतों के मामुली अंतर से जीते तरूण भानोत 2018 का चुनाव 18 हजार से ज्यादा के अंतर से जीते। अब सांसद राकेश सिंह और तरुण भानोत दोनों के लिए ही मुकाबला टफ है।
  • सीधी सीट पर रीति पाठक को बीजेपी ने टिकट दिया है। उनके लिए कांग्रेस से पहले बीजेपी के केदारनाथ शुक्ल ही मुश्किल बने हुए हैं। जो अपना टिकट कटने से नाराज हैं।
  • सतना से बीजेपी ने सांसद गणेश सिंह को मैदान में उतारा है उनके सामने कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा होंगे जो वर्तमान में सतना से विधायक भी हैं। हालांकि, गणेश सिंह लंबे समय से बीजेपी के सांसद हैं ऐसे में फिलहाल उनकी रहा मुश्किल नजर नहीं आ रही है।
  • 2003 के चुनाव से यहां बीजेपी का कब्जा रहा है। बीते चुनाव में सीट कांग्रेस की झोली में चली गई जिसे बीजेपी वापस हासिल करना चाहती है।
  • पिछले चुनाव में बमुश्किल 2656 वोटों से जीते नरोत्तम मिश्रा का मुकाबला दतिया सीट पर कांग्रेस के राजेंद्र भारती से है।
  • डबरा में इमरती देवी और सुरेश राजे, सोनकच्छ से बीजेपी के राजेश सोनकर से टक्कर लेने के लिए कांग्रेस ने सज्जन सिंह वर्मा को भेजा है।
  • लहार का किला ढहाने के लिए गोविंद सिंह के सामनने बीजेपी ने अंबरीश शर्मा को उतारा है। विश्वास सारंग की नरेला सीट पर कांग्रेस के जमीनी नेता मनोज शुक्ला मैदान में हैं।
  • भोपाल मध्य को दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस के आरिफ मसूद के सामने बीजेपी ने ध्रुव नारायण सिंह को टिकट दिया है।

इन सीटों के अलावा...

हरसूद, सांवेर, सांची, ग्वालियर, सुरखी, बदनावर, बमोरी, राघोगढ़, चुरहट, सिंहावल, अनूपपुर, मैहर, शिवपुरी, चाचौड़ा, इंदौर 3, इंदौर 2, राऊ, उज्जैन दक्षिण, मल्हारगढ़ और झाबुआ भी उन हॉट सीटों में से एक हैं जिन पर इस बार सबकी नजरें जमी होंगी।

ऊंट की करवट भांपने के लिए वक्त का इंतजार करना होगा

कांग्रेस के सामने चुनौती है कि वो 2018 से बेहतर प्रदर्शन करे और बीजेपी के सामने चैलेंज है अपनी सरकार को बचाने का। अब तक पीएम मोदी की लोकप्रियता का दम भर रही बीजेपी ने पीएम मोदी के लेटर के साथ इमोशनल कार्ड भी खेल ही लिया है। हालांकि, जिन स्टार प्रचारकों पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी होनी चाहिए थी वो अपनी सीट पर बंध कर रहे गए हैं। कांग्रेस का चुनावी रथ भी फिलहाल चंद घोषणाओं के सहारे ही आगे बढ़ता दिख रहा है। तस्वीर कुछ ऐसी है जो न पूरी तरफ साफ है न पूरी तरह धुंधली। लिहाजा चुनावी ऊंट की करवट को भांपने के लिए कुछ वक्त का इंतजार और करना होगा।

वैसे तो कांग्रेस की अब तक की लिस्ट में कोई खास चौंकाने वाले नाम नहीं है, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि वो इन हॉट केक बनी सीटों पर जीतने में कामयाब रहेगी। अब नतीजों का दिन तय करेगा कि ये सीटें किसके खाते में जाती हैं। तब तक जस्ट वेट एंड वॉच...

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